सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

जून, 2010 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अहसास करो तो...बोलती है कुर्सी

एक जमाना था जब मुझ पर बैठने वाले को लोग इज्जत और आदर के साथ देखते थे। आज जनता का भविष्य पूर्णतः मुझ पर बैठने वाले के हाथ में है। समाचार-पत्रों, टेलिविजन, पत्र-पत्रिकाओं में मेरा ही बोल-बाला रहता है। मेरे सामने किसी का राज नहीं बल्कि मुझ पर बैठने वाला ही राजा हो जाता है, पर इन सबके बावजूद कोई मुझसे कभी नहीं पूछता कि मुझे क्या ये सब पसंद है या नहीं? मित्रों! आज मुझे मौका मिला है इसलिए मैं आपको अपनी मनोदशा बता रही हूं। मुझ कुर्सी के लिए आजकल लोग क्या-क्या नहीं करते? मेरी वजह से कहीं दंगे होते हैं जो कहीं खून बहता है। भाई-भाई का नहीं रहता, बेटा बाप से मुकाबला कर बैठता है। मुझे पाने के लिए रुपया पानी की तरह बहा दिया जाता है। कहीं लोगों को विविध प्रकार के लालच देकर उनसे वोट लिया जाता है, कहीं ऊंचे-ऊंचे सपने दिखाए जाते हैं। साम, दाम, दण्ड, भेद सभी का उपयोग कर आखिर कोई न कोई मुझे पा लेता है। एक बार मुझ पर बैठने के बाद वह नेता जिसने चुनाव से पहले सिर्फ देने का वादा किया था, अब सिर्फ लेता ही लेता है। धीरे-धीरे शुरू हो जाता है भ्रष्टाचार का सिलसिला और जनता बेचारी हो जाती है बेहाल। यह सब देखकर
मैं पंछी उन्मुक्त गगन का जहां चाहा चला जाता हूं क्या रोकेगा, कौन रोकेगा हर दीवार लांघ जाता हू मेरी कोई एक राह नहीं जहां चाहा घूम आता हू मस्त प्रेमी भंवरे की तरह मैं डाल-डाल पर जाता हूं करता हूं रसपान कली का फूल-फूल मंडराता हूं अपनी ही मस्ती में मस्त झूम-झूमकर जब राग सुनाता हूं खिल उठती है कली कली रोम रोम में मैं बस जाता हूं ‘मन’ हू मैं अपने ही मन में ख्वाबों के फूल खिलाता हूं मैं पंछी उम्मुक्त गगन का.....।

प्रवेश प्रक्रिया शुरू, अंतिम तिथि 16 जून

राजस्थान विश्वविद्यालय में स्नात्तक एवं स्नातकोत्त कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में सत्र 2010-11 के लिए प्रवेश प्रक्रिया 1 जून से शुरू हो गई है। प्रवेश आवेदन पत्र प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि 16 जून है। साथ ही 50 रूपये विलंब शुल्क के साथ 25 जून तक आवेदन पत्र जमा कराए जा सकगें। विश्वविद्यालय के संगठक महाविद्यालयों सहित 10 केन्द्रों पर आवेदन पत्र मिलेंगे। आवेदन पत्र का मूल्य 200 रूपए रखा गया है। प्रवेश आवेदन पत्र विश्वविद्यालय की वेबसाइट से भी डाउनलोड किया जा सकता है। डाउनलोड किए हुए आवेदन पत्र रजिस्ट्रार यूनिवर्सिटी आॅफ राजस्थान जयपुर के नाम से देय 200 रूपए के डिमांड ड्रॉफ्ट के साथ जमा कराए जा सकते हैं। विलम्ब शुल्क की स्थिति में डिमांड ड्रॉफ्ट 250 रूपए देय होगा।

महत्वाकांक्षाओं ने बचपन को भी रियल से रील बना दिया है, क्यों? (1 जून, बाल सुरक्षा दिवस पर विशेष)

बचपन! जीवन की सबसे सुनहरी अवस्था। एकदम अलमस्त...चिंता-फिकर, राग-द्वेष, हार-जीत से दूर। लेकिन आज?...बचपन के मायने बदल गए हैं। अब बचपन यानी...प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता, स्टेज और स्टेज की धमक और चमक। आज अनजाने में मां बाप ही बच्चों का बचपन छीन रहे हैं, समाज में अपनी नाक ऊंची रखने की होड़ में बच्चे उनकी महत्वाकांक्षाओं के बीच मोहरा बनकर रह गये हैं। हर दिन, हर घंटे टीवी चैनलों पर प्रसारित होते रियलिटी शोज ने बच्चों का बचपन भी रियल से रील बना दिया है।...और इस रील के डायरेक्टर बन बैठे हैं उनके अपने मां-बाप, जो छोटे-छोटे बच्चों को लेकर घंटों आॅडिशन के लिए बैठे रहते हैं। कई बार तो कड़ी धूप में सुबह से शाम और फिर शाम से रात कर दी जाती है। कोई नहीं पूछता कि बच्चे ने कहाँ लघुशंका की, कहाँ खाया-पिया। जिन्हें देखभाल करनी चाहिए, वे खुद ही बच्चों को सताते हैं तो दूसरे कहां तक ख्याल रख सकते हैं। लेकिन इससे भी अहम बात यह है कि इन रियलिटी शोज तक पहुंचने के लिए, यानी उसकी तैयारी करने तक उन बच्चों पर कितना कहर बरपा होगा, जरा सोचिए? अभी एक शो में सैकड़ों बच्चे आडिशन से रह गए, तो उनके मां-बाप ने हंगामा मचा दि