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बालवाहिनी के नाम पर ‘दुघर्टना वाहिनी’ दौड़ा रहे स्कूल

बालवाहिनी के नाम पर ‘दुघर्टना वाहिनी’ दौड़ा रहे स्कूल

    कोटपूतली। कस्बे में सैकडों निजी विद्यालय हैं जिनमें परिवहन व्यवस्था के लिये बाल वाहिनी के नाम पर स्कूल संचालकों ने बसों व टैम्पों की व्यवस्था कर रखी है लेकिन सुरक्षा मानकों को लेकर ना कोई संस्था गंभीर है और ना ही परिवहन विभाग और ना ही अभिभावक। नतीजतन संस्था प्रधानों द्वारा मामूली से लालच को लेकर छात्र छात्राओं की जिंदगी के साथ सरेआम खिलवाड किया जा रहा है। शिक्षा विभाग व परिवहन विभाग की उदासीनता के चलते निजी विद्यालय परिवहन के नाम पर छात्रों के अभिभावकों से मोटी रकम वसूल कर रहे हैं लेकिन सुरक्षा व्यवस्थाओं की बात करें तो इन संस्थाओं में ढाक के तीन पात नजर आते हैं। बीस सीटर मिनी बसों में चालीस से पचास विद्यार्थियों को ठूंस ठूंस कर भर दिया जाता है जिससे आये दिन बाल वाहिनियों से मासूम छात्रों व उनके परिवार की जिंदगी तबाह हो रही है।     स्कूल संचालकों के जरा से लालच की वजह से आए दिन स्कूली छात्र दुघर्टना का शिकार होते रहते हैं। पिछले दिनों ऐसी ही लापरवाही की वजह से एक छात्र अपना जीवन गंवा बैठा, जब बाल वाहिनी के नाम पर एक ट्रेवल्स कम्पनी की निजी बस बिना परिचालक के करीब पचास छात्रों को लेकर राजनौता की ओर से गोरधनपुरा चैकी स्थित एक प्राइवेट स्कूल आ रही थी। तभी अचानक ब्रेकर आने से स्कूली छात्र बस से दरवाजे से नीचे जा गिरा जिस पर बालवाहिनी ;बसद्ध का पिछला टायर छात्र के सिर को कुचलता हुआ आगे बढ गया। जिससे उसकी मौत हो गई। ;यहां हमने जानबूझकर स्कूल का नाम नहीं दिया है, क्योंकि यह स्थिति केवल उक्त स्कूल की ही नहीं अपितु कोटपूतली क्षेत्र के लगभग हर स्कूल की है। जहां अभिभावकों एवं बच्चों को वाहन सुविधा के नाम पर ना केवल लूटा जा रहा है बल्कि भंयकर लापरवाही बरतते हुए हादसों को भी न्योता दिया जा रहा है।
    यहां हादसे को टाला जा सकता था, प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि बस तेज गति से लहराती हुए ब्रेकर से कूद गई जिसमें क्षमता से अधिक बच्चे भरे हुए थे। यदि बस में परिचालक होता और बस का दरवाजा बंद होता तो हादसे को टाला जा सकता था लेकिन मामूली रूपयों की बचत ने एक परिवार का चिराग बुझा दिया।
स्कूल के टैम्पों में बजते है अश्लील फिल्मी गानें- यहां अभिभावकों से न्यूज चक्र का एक गंभीर सवाल है, क्या आपने कभी अपने बच्चे की ‘वाहन सुविधा’ चेक की है? क्या आपने देखा है कि आपके द्वारा भारी फीस दिये जाने के बाद भी आपका बच्चा बालवाहिनी ;टैम्पों या बसद्ध मंे कैसे आता है? उसे सीट मिलती है या घर तक पहुंचाने के लिए उसे किसी तरह भेड़ बकरियों की तरह बस ‘ठूंस ’ लिया जाता है। अगर अभी तक आपने नहीं देखा तो देखें, और साथ ही बच्चे से यह भी पूछें कि क्या स्कूल से घर तक के सफर के दौरान वाहन में किसी तरह के गाने भी बजते हैं।
    यहां हमारे सवांददाता ने देखा है कि कुछेक स्कूली टैम्पों में फूहड़ व अश्लील गाने तक बजते रहते हैं।

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