बानसूर को चाहिए सरकारी काॅलेज

उल्लेखनीय है कि बानसूर कस्बे में शिक्षा की दृष्टि से उचित वातावरण है। यहां सरकारी व गैर सरकारी विद्यालय तो काफी हैं लेकिन सरकारी महाविद्यालय एक भी नहीं है। जिसके चलते यहां के युवा छात्र-छात्राओं को 15-20 किलोमीटर प्रतिदिन काॅलेज के लिए अप-डाउन करना पड़ता है। सर्दी और बरसात के मौसम में छात्राओं के लिए काॅलेज से घर और घर से काॅलेज तक का सफ़र नासूर बन जाता है। कारण कि आसपास के गांव ढ़ाणियों से चलकर छात्र-छात्राओं को पहले बानसूर पहुंचना होता है और फिर बानसूर से अन्य साधन से काॅलेज। इस दौरान अध्ययनकाल में से काॅलेज छात्र-छात्रा 4-5 घण्टे यात्रा में ही गंवा देते हैं।
...कहने का अर्थ है बानसूर एवं इसके आसपास के युवाओं के लिए बानसूर में काॅलेज का ना होना, यहां के युवाओं की प्रगति में बाधक-सा बन पड़ा है। गरीब विद्यार्थी के लिए सी.सैकण्डरी के बाद स्नात्तक की पढ़ाई टेढ़ी खीर हो जाती है। या तो उसे भारी फीस चुकाकर आसपास के गैर सरकारी महाविद्यालय में प्रवेश लेना पड़ता है या फिर अलवर व कोटपूतली शहर में रहने के लिए किराए पर कमरा लेना पड़ता है। प्रशासन से युवाओं की अपेक्षा है कि यहां शीघ्र महाविद्यालय खुलवाने का प्रयास करे।
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