कोटपूतली। बाजारों में दीपावली की रौनक दिखाई देने लगी हैं। करीब 2 माह की मंदी के बाद बाजारों में ग्राहकी लौट आई है। ...लेकिन इसी बीच बाजार में बीचों-बीच चाय की थडि़यों, ढ़ाबों और होटलों के बाहर सड़क पर रखे घरेलु रसोई गैस सिलेण्डर कभी भी किसी हादसे का कारण बन सकते हैं। इस तरह बाजार में खुले में रसोई गैस सिलेण्डरों का उपयोग होने से ना केवल घरेलु उपभोक्ताओं को रसोई गैस की किल्लत झेलनी पड़ती है, बल्कि बीच-बाजार इनसे हादसा हो जाने पर होने वाले जान-माल के नुकसान का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। गौरतलब है कि इस तरह सिलेण्डर के उपयोग से जयपुर, दिल्ली और गुड़गांव जैसे शहरों में पहले हादसे हो चुके हैं, लेकिन कोटपूतली प्रशासन ने इससे कोई सबक नहीं लिया है। कालाबाजारी का सबूत बाजार में कदम- कदम पर रखे रसोई गैस सिलेण्डर, सिलेण्डरों की कालाबाजारी का जीता- जागता सबूत है। रसोई गैस का व्यावसायिक उपयोग लेने के लिए उपयोगकर्ता ब्लैक में ही सिलेण्डर उठाता है बावजूद इसके इन पर कभी विभागीय कार्रवाही नहीं हो पाई है।
किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते ... कहते हैं हाथों की लकीरों पर भरोसा मत कर , किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। जी हां , इस कथनी को करनी में बदल दिया है राजस्थान की कोटपूतली तहसील के नारेहड़ा गांव की 14 वर्षीय मुखला सैनी ने। मुखला को कुदरत ने जन्म से ही हाथ नहीं दिये , लेकिन मुखला का हौसला , जज्बा और हिम्मत देखिए , उसने ‘ करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान ’ कहावत को भी चरितार्थ कर दिखाया है , अब वह अपने पैरों की सहायता से वह सब कार्य करती है जो उसकी उम z के अन्य सामान्य बच्चे करते हैं। कुदरत ने मुखला को सब कुछ तो दिया , लेकिन जीवन के जरूरी काम-काज के लिए दो हाथ नहीं दिये। बिना हाथों के जीवन की कल्पना करना भी बहुत कठिन है , लेकिन मुखला ने इसे अपनी नियति मान कर परिस्थितियों से समझौता कर लिया है। हाथ नहीं होने पर अब वह पैरों से अपने सारे काम करने लग गई है। पढ़ने की ललक के चलते मुखला पैरों से लिखना सीख गई है और आठवीं कक्षा में पहुंच गई है। मुखला को पैरों से लिखते देखकर हाथ वालों को भी कुछ कर दिखाने की प्रेरणा लेनी चाहिए...
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