कोटपूतली। बाजारों में दीपावली की रौनक दिखाई देने लगी हैं। करीब 2 माह की मंदी के बाद बाजारों में ग्राहकी लौट आई है। ...लेकिन इसी बीच बाजार में बीचों-बीच चाय की थडि़यों, ढ़ाबों और होटलों के बाहर सड़क पर रखे घरेलु रसोई गैस सिलेण्डर कभी भी किसी हादसे का कारण बन सकते हैं। इस तरह बाजार में खुले में रसोई गैस सिलेण्डरों का उपयोग होने से ना केवल घरेलु उपभोक्ताओं को रसोई गैस की किल्लत झेलनी पड़ती है, बल्कि बीच-बाजार इनसे हादसा हो जाने पर होने वाले जान-माल के नुकसान का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। गौरतलब है कि इस तरह सिलेण्डर के उपयोग से जयपुर, दिल्ली और गुड़गांव जैसे शहरों में पहले हादसे हो चुके हैं, लेकिन कोटपूतली प्रशासन ने इससे कोई सबक नहीं लिया है। कालाबाजारी का सबूत बाजार में कदम- कदम पर रखे रसोई गैस सिलेण्डर, सिलेण्डरों की कालाबाजारी का जीता- जागता सबूत है। रसोई गैस का व्यावसायिक उपयोग लेने के लिए उपयोगकर्ता ब्लैक में ही सिलेण्डर उठाता है बावजूद इसके इन पर कभी विभागीय कार्रवाही नहीं हो पाई है।
यह किसी फिल्म का सीन नहीं, बल्कि एक ऐसी दुखद हकीकत है, जिसे कोटपूतली के बाशिंदे हर रोज झेलते हैं। गांव से मजदूरी पर निकला कोई मजदूर हो या किसी कम्पनी का ओहदेदार प्रशासनिक अधिकारी।...हर किसी के जहन में बस एक ही डर रहता है कि पता नहीं ‘कोटपूतली क्राॅस ’ हो पाएगा कि नहीं? पता नहीं जाम में फंस जांए या जान ही चली जाए। कोटपूतली में सर्विस लाइन को लेकर आए दिन होने वाली दुर्घटनाऐं इसी ओर इशारा करती हैं कि ‘यहां चलना खतरे से खाली नहीं हैं।’ अगर यकीन ना हो तो कोटपूतली मैन चैराहे से लक्ष्मीनगर मोड़ तक की सर्विस लाइन के हालात देख आइए। यकीनन आपके चेहरे का रंग तो बदरंग नजर आएगा ही सेहत भी डाॅक्टर की सलाह लेने को कहने लगेगी। ...लेकिन इन सब से शायद हमारे जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अधिकारियों को कोई खास मतलब नहीं है, तभी तो दिन में एक-दो दफा़ यहां से अगर गुजरते भी हैं तो आंखे मूंदकर। (ऊपर) न्यूज चक्र द्वारा कोटपूतली पुलिया से डाबला रोड़ पर ली गई ये तस्वीरें ओवरलोडेड डम्परों की स्पष्ट तस्वीरें बता रही हैं कि दिनदहाड़े कैसे कोटपूतली प्रशासन के नाक के नीचे ओवरलोडेड वाहनों का आवागमन होता
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