जी हां, सही पूछ रहा हूं मैं। अपने आसपास लोगों को देखिए या फिर अपने आपको देखिए, क्या खा रहे हैं आप?....गुटखा, तम्बाकू, सिगरेट, पान, जर्दा या फल, मेवे, सब्जी!
आपको भले ही यह आश्चर्य लगे, लेकिन यह सच है कि अगर आप गुटखा खाते हैं तो आप ‘2000 रू.किलो की वस्तु को कुछ देर मुंह में रखकर थूक देते हैं।’ क्योंकि एक गुटखे का पाउच 2 से 12 रू का आता है और उसमें 2 से 4 गzाम वजन होता है। हां यह बात अलग है कि वह एक पैकेट आपके गाल, दांत, होंठ, जबड़े या आंखों को नुकसान पहुंचाता है, कईयों को तो कैंसर तक हो जाता है। मेरी बात पर यकीन ना आये तो एक बार जयपुर के महावीर कैंसर अस्पताल के किसी वार्ड में घूम आइये। आपको यकीन ही नहीं बल्कि विश्वास भी हो जाएगा कि आप बादाम, काजू जैसे मेवे खाने वाले लागों से दिलदार आदमी हैं। आप कैंसर अस्पताल के किसी वार्ड में घूमेगें तो इतना तो जान ही लेगें कि तम्बाकू- गुटखे से आपका गाल गल सकता है, उसमें कीड़े लग सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे गली में आवारा घूमते किसी जानवर के कान या गर्दन पर लगे होते हैं। आपका जबड़ा आपका साथ छोड़ सकता है। आपकी जीभ बेस्वाद होकर आपका बोलना भी बंद कर सकती है। ...लेकिन यह सब मैं आपको क्यूं बता रहा हूं यह तो आप खुद अस्पताल में घूमेंगे तो जान ही जाएगें। खैर मैं तो यह कह रहा था कि इतना सब देखने के बाद आप गुटखा, तम्बाकू, सिगरेट या जर्दा छोड़ना तो चाहेगें नहीं, क्योंकि छोड़ते तो बहुत पहले ही छोड़ देते, आखिर खाते ही क्यों और फिर कोई चीज छोड़ने के लिए थोड़े ही अपनाई जाती है। वैसे आप शीशा ;दर्पणद्ध तो रोज देखते होगें।...और आपके लाल-पीले दांत भी आपको दर्पण में रोज चिड़ाते होगें।...बस फिर ठीक है जब आपको दर्पण में अपना सड़ा-गला चेहरा देखकर ही शर्म नहीं आती तो भला अस्पताल घूम आने से आपको क्या फर्क पड़ेगा। आप तो खाते रहिए, आंख और मुंह बंद करके, बस। वैसे भी इस दुनिया से एक ना एक दिन तो जाना ही होता है, और फिर दुनिया भी तो पापी हो चली है। इस पापी दुनिया में क्यूं ज्यादा दिन टिकना। लोग वैसे तो मरने नहीं देते। गुटखा-तम्बाकू का सहारा है यह भी मेरे जैसे लोग छीन लेना चाहते हैं तो फिर क्यूं इस दुनिया में टिकने के ख्वाब देखना।
अब देखो ना, अगर बादाम, अखरोट, काजू, सेब, संतरे, केले जैसी चीज खाएगें तो मोटे हो जाएगें, तदंुरस्त रहेगें और तंदुरस्त रहेगें तो कम्बख्त बुढ़ापा भी देर से आएगा और अगर बुढ़ापा देर से आया तो कमाना भी ज्यादा दिन पड़ेगा और इस मंहगाई के जमाने में कमायें कब तक?
फिर तो यही ठीक है कि 12रू का एक गुटखा 3 मिनट में खायें पूरे दिन में 15-20 गुटखे मुंह में उड़ेलकर थूके और धरती को लाल करें, अपने दांत, होंठ व गाल लाल करें कम्बख्त वैसे तो लाल होते नहीं और महंगाई को ठेंगा दिखाकर बीपीएल के गेंहू खायें और जल्दी-जल्दी 25-30 साल पूरे कर दुनिया से चले जाएं। ...तो साहब सोच-समझकर तय कीजिएगा कि क्या खाना चाहेंगें आप 2000 रूपये किलो का गुटखा या 400 रूपये किलो के बादाम? तय करते समय यह भी ध्यान रखिएगा कि बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता भी है और बूंद-बूंद से ही घड़ा खाली भी होता है।
यहां आप अपनी टिप्पणी अवश्य छोड़े। धन्यवाद।
आपको भले ही यह आश्चर्य लगे, लेकिन यह सच है कि अगर आप गुटखा खाते हैं तो आप ‘2000 रू.किलो की वस्तु को कुछ देर मुंह में रखकर थूक देते हैं।’ क्योंकि एक गुटखे का पाउच 2 से 12 रू का आता है और उसमें 2 से 4 गzाम वजन होता है। हां यह बात अलग है कि वह एक पैकेट आपके गाल, दांत, होंठ, जबड़े या आंखों को नुकसान पहुंचाता है, कईयों को तो कैंसर तक हो जाता है। मेरी बात पर यकीन ना आये तो एक बार जयपुर के महावीर कैंसर अस्पताल के किसी वार्ड में घूम आइये। आपको यकीन ही नहीं बल्कि विश्वास भी हो जाएगा कि आप बादाम, काजू जैसे मेवे खाने वाले लागों से दिलदार आदमी हैं। आप कैंसर अस्पताल के किसी वार्ड में घूमेगें तो इतना तो जान ही लेगें कि तम्बाकू- गुटखे से आपका गाल गल सकता है, उसमें कीड़े लग सकते हैं। ठीक वैसे ही जैसे गली में आवारा घूमते किसी जानवर के कान या गर्दन पर लगे होते हैं। आपका जबड़ा आपका साथ छोड़ सकता है। आपकी जीभ बेस्वाद होकर आपका बोलना भी बंद कर सकती है। ...लेकिन यह सब मैं आपको क्यूं बता रहा हूं यह तो आप खुद अस्पताल में घूमेंगे तो जान ही जाएगें। खैर मैं तो यह कह रहा था कि इतना सब देखने के बाद आप गुटखा, तम्बाकू, सिगरेट या जर्दा छोड़ना तो चाहेगें नहीं, क्योंकि छोड़ते तो बहुत पहले ही छोड़ देते, आखिर खाते ही क्यों और फिर कोई चीज छोड़ने के लिए थोड़े ही अपनाई जाती है। वैसे आप शीशा ;दर्पणद्ध तो रोज देखते होगें।...और आपके लाल-पीले दांत भी आपको दर्पण में रोज चिड़ाते होगें।...बस फिर ठीक है जब आपको दर्पण में अपना सड़ा-गला चेहरा देखकर ही शर्म नहीं आती तो भला अस्पताल घूम आने से आपको क्या फर्क पड़ेगा। आप तो खाते रहिए, आंख और मुंह बंद करके, बस। वैसे भी इस दुनिया से एक ना एक दिन तो जाना ही होता है, और फिर दुनिया भी तो पापी हो चली है। इस पापी दुनिया में क्यूं ज्यादा दिन टिकना। लोग वैसे तो मरने नहीं देते। गुटखा-तम्बाकू का सहारा है यह भी मेरे जैसे लोग छीन लेना चाहते हैं तो फिर क्यूं इस दुनिया में टिकने के ख्वाब देखना।
अब देखो ना, अगर बादाम, अखरोट, काजू, सेब, संतरे, केले जैसी चीज खाएगें तो मोटे हो जाएगें, तदंुरस्त रहेगें और तंदुरस्त रहेगें तो कम्बख्त बुढ़ापा भी देर से आएगा और अगर बुढ़ापा देर से आया तो कमाना भी ज्यादा दिन पड़ेगा और इस मंहगाई के जमाने में कमायें कब तक?
फिर तो यही ठीक है कि 12रू का एक गुटखा 3 मिनट में खायें पूरे दिन में 15-20 गुटखे मुंह में उड़ेलकर थूके और धरती को लाल करें, अपने दांत, होंठ व गाल लाल करें कम्बख्त वैसे तो लाल होते नहीं और महंगाई को ठेंगा दिखाकर बीपीएल के गेंहू खायें और जल्दी-जल्दी 25-30 साल पूरे कर दुनिया से चले जाएं। ...तो साहब सोच-समझकर तय कीजिएगा कि क्या खाना चाहेंगें आप 2000 रूपये किलो का गुटखा या 400 रूपये किलो के बादाम? तय करते समय यह भी ध्यान रखिएगा कि बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता भी है और बूंद-बूंद से ही घड़ा खाली भी होता है।
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its very nice article
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