....संभालिए छाती में बदनुमा खंजर घोंपती युवा पीढ़ी को
अगर आपने देखी हो तो फिल्म ‘‘तथास्तु’’ में संजय दत्त ने बाप के दर्द को बयां करते हुए कहा था कि जब माता-पिता अपने बच्चों को सीने से लगाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे भगवान मिल गया हो और बच्चा जब रोने लगता है तो ऐसा लगता है जैसे सारी दुनिया को आग लग गई हो। यानि बच्चे को जरा सी तकलीफ होते ही मां-बाप का दिल दर्द से तड़प उठता है। बच्चे की एक मुस्कान के लिए वो सारी दौलत लुटाने को तैयार रहते हैं और वही बच्चे बड़े होकर बदनामी का बदनुमा खंजर मां-बाप ही छाती में घौंपते हैं तो उन मां-बाप पर क्या बीतती होगी सहज ही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हमारी आधुनिकता की ओर जा रही 21वीं सदी की यह पीढ़ी जहां एक ओर उन्नती के नये आयाम को छू रही है वहीं कुछ बच्चे हमारी जिद व नासमझी के कारण पथ भzष्ट होकर पाप के गर्त में समा रहे हैं।
हाल ही में कोटपूतली क्षेत्र में हुई घटनाऐं इसी बात का उदाहराण हैं कि बड़ों के पथ प्रदर्शन में कमी के कारण अपने ही मां-बाप, पति या पत्नि, भाई या बहिन, या जान से प्यारे दोस्त का गला रेतते हुए हाथ नहीं कांपते। एक घटना में पत्निी ने पति के दोस्त के हाथों पति की हत्या करवाई। दूसरी में जीजा के भाई ने साले की हत्या की और तीसरी में अपनी ही सगी बेटियों ने मां-बाप को कुल्हाड़ी से कटवा दिया। घटनाएंे तो घट गई। आरोपी पकड़े भी गऐ और उन्हें उनके किये की सजा भी मिल जाऐगी लेकिन इस घटना ने हमारे समाज के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है कि आखिर हमारी युवा पीढ़ी जा किधर रही है? इस भटकाव के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? यह एक विचारणीय बिन्दु है। जहां तक मेरी राय कि बात है तो मैं इसके लिए खुद मां-बाप को ज्यादा दोषी मानता हूं। उसके बाद मोबाइल और टेलिविजन पर परोसी जाने वाली घटिया सीरियल सामगzी और फिर खुद हमारी युवा पीढ़ी को। क्या मां-बाप इतने व्यस्त रहते हैं कि उनको अपनी औलाद से बात करने और उनके मन की थाह लेने का भी समय नहीं है? या उनके बेटे-बेटी का किसके साथ उठना बैठना ज्यादा है इतनी जानकारी वो नहीं रख सकते। सिर्फ पैसे कमाना ही हमारा ध्येय रह गया है। ...और हमारी भटकती युवा पीढ़ी को क्या कहें? पहले से शिक्षा का स्तर तो बढ़ रहा है लेकिन संस्कारों का स्तर गिरता जा रहा है। किसी घटना को अंजाम देने से पहले अगर वो इसके परिणाम का अन्दाजा भी अगर ना लगा सके तो फिर क्या फायदा ऐसी शिक्षा का। मोबाइल, सुविधा के लिए बना एक यन्त्र है लेकिन इसका जमकर गलत इस्तेमाल करते हैं करने वाले। एसएमएस मैसेज द्वारा पूरी बातचीत हो जाती है, पूरी योजना बन जाती है और बेचारे सीधे-साधे मां-बाप को इसकी भनक भी नहीं लगती। विश्वासघात! जन्मदाताओं के साथ विश्वासघात।इस विश्वासघात का परिणाम-सलाखें और कई जिन्दगियां बर्बाद। क्या इन बच्चों ने वह कहानी नहीं सुनी जिसमें एक युवक अपनी प्रेमिका के कहने पर उपनी मां का दिल निकालकर प्रेमिका के पास पहुंचता है तो वह उसे दुत्कारते हुए कहती है कि भागो यहां से, जो अपनी मां का नहीं हुआ वो मेरा क्या होगा। ...तो जो भी आपको ऐसा गलत काम करने को उकसाता है तो याद रखें वो जिस अजीज का बुरा चाह रहा है उसी का नहीं हुआ तो आपका क्या होगा। आपसे बेहतर मिलते ही वो आपको भी रास्ते से हटवा सकता या सकती है।
अधिकांश प्रेम कहानियां इस भzम से उत्पन्न होती हैं कि लड़के को लड़की विश्व की सबसे सुन्दर कन्या दिखाई देती है और लड़की को लगता है कि उसके प्रेमी से ज्यादा साहसी और कोई नहीं हो सकता। लेकिन समय की तीखी धूप इस भzम को तोड़ देती है। और सत्य यही है कि प्रेम एक उतंग तीवz लहर है जबकि दांपत्य मंथर गति से बहने वाली शीतल नदी। अत: हमारी सुदृढ़ संस्कृति के अनुसार दांपत्य में विश्वास रखंे। सुखी रहेगें, शांति बनी रहेगी।
;आप मेरे विचारों से कहां तक सहमत है। अपने विचार मुझे ई-मेल, newschakra@gmail.com के माध्यम से अवश्य अवगत करायें या अपनी प्रतिक्रिया छोड़े। श्रेष्ठ विचारों को अखबार में भी जगह दी जाएगी तथा मुझे भी खुशी होगी। जय हिन्द, जय भारत।
अगर आपने देखी हो तो फिल्म ‘‘तथास्तु’’ में संजय दत्त ने बाप के दर्द को बयां करते हुए कहा था कि जब माता-पिता अपने बच्चों को सीने से लगाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे भगवान मिल गया हो और बच्चा जब रोने लगता है तो ऐसा लगता है जैसे सारी दुनिया को आग लग गई हो। यानि बच्चे को जरा सी तकलीफ होते ही मां-बाप का दिल दर्द से तड़प उठता है। बच्चे की एक मुस्कान के लिए वो सारी दौलत लुटाने को तैयार रहते हैं और वही बच्चे बड़े होकर बदनामी का बदनुमा खंजर मां-बाप ही छाती में घौंपते हैं तो उन मां-बाप पर क्या बीतती होगी सहज ही अनुमान नहीं लगाया जा सकता। हमारी आधुनिकता की ओर जा रही 21वीं सदी की यह पीढ़ी जहां एक ओर उन्नती के नये आयाम को छू रही है वहीं कुछ बच्चे हमारी जिद व नासमझी के कारण पथ भzष्ट होकर पाप के गर्त में समा रहे हैं।
हाल ही में कोटपूतली क्षेत्र में हुई घटनाऐं इसी बात का उदाहराण हैं कि बड़ों के पथ प्रदर्शन में कमी के कारण अपने ही मां-बाप, पति या पत्नि, भाई या बहिन, या जान से प्यारे दोस्त का गला रेतते हुए हाथ नहीं कांपते। एक घटना में पत्निी ने पति के दोस्त के हाथों पति की हत्या करवाई। दूसरी में जीजा के भाई ने साले की हत्या की और तीसरी में अपनी ही सगी बेटियों ने मां-बाप को कुल्हाड़ी से कटवा दिया। घटनाएंे तो घट गई। आरोपी पकड़े भी गऐ और उन्हें उनके किये की सजा भी मिल जाऐगी लेकिन इस घटना ने हमारे समाज के सामने एक बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है कि आखिर हमारी युवा पीढ़ी जा किधर रही है? इस भटकाव के लिए आखिर जिम्मेदार कौन है? यह एक विचारणीय बिन्दु है। जहां तक मेरी राय कि बात है तो मैं इसके लिए खुद मां-बाप को ज्यादा दोषी मानता हूं। उसके बाद मोबाइल और टेलिविजन पर परोसी जाने वाली घटिया सीरियल सामगzी और फिर खुद हमारी युवा पीढ़ी को। क्या मां-बाप इतने व्यस्त रहते हैं कि उनको अपनी औलाद से बात करने और उनके मन की थाह लेने का भी समय नहीं है? या उनके बेटे-बेटी का किसके साथ उठना बैठना ज्यादा है इतनी जानकारी वो नहीं रख सकते। सिर्फ पैसे कमाना ही हमारा ध्येय रह गया है। ...और हमारी भटकती युवा पीढ़ी को क्या कहें? पहले से शिक्षा का स्तर तो बढ़ रहा है लेकिन संस्कारों का स्तर गिरता जा रहा है। किसी घटना को अंजाम देने से पहले अगर वो इसके परिणाम का अन्दाजा भी अगर ना लगा सके तो फिर क्या फायदा ऐसी शिक्षा का। मोबाइल, सुविधा के लिए बना एक यन्त्र है लेकिन इसका जमकर गलत इस्तेमाल करते हैं करने वाले। एसएमएस मैसेज द्वारा पूरी बातचीत हो जाती है, पूरी योजना बन जाती है और बेचारे सीधे-साधे मां-बाप को इसकी भनक भी नहीं लगती। विश्वासघात! जन्मदाताओं के साथ विश्वासघात।इस विश्वासघात का परिणाम-सलाखें और कई जिन्दगियां बर्बाद। क्या इन बच्चों ने वह कहानी नहीं सुनी जिसमें एक युवक अपनी प्रेमिका के कहने पर उपनी मां का दिल निकालकर प्रेमिका के पास पहुंचता है तो वह उसे दुत्कारते हुए कहती है कि भागो यहां से, जो अपनी मां का नहीं हुआ वो मेरा क्या होगा। ...तो जो भी आपको ऐसा गलत काम करने को उकसाता है तो याद रखें वो जिस अजीज का बुरा चाह रहा है उसी का नहीं हुआ तो आपका क्या होगा। आपसे बेहतर मिलते ही वो आपको भी रास्ते से हटवा सकता या सकती है।
अधिकांश प्रेम कहानियां इस भzम से उत्पन्न होती हैं कि लड़के को लड़की विश्व की सबसे सुन्दर कन्या दिखाई देती है और लड़की को लगता है कि उसके प्रेमी से ज्यादा साहसी और कोई नहीं हो सकता। लेकिन समय की तीखी धूप इस भzम को तोड़ देती है। और सत्य यही है कि प्रेम एक उतंग तीवz लहर है जबकि दांपत्य मंथर गति से बहने वाली शीतल नदी। अत: हमारी सुदृढ़ संस्कृति के अनुसार दांपत्य में विश्वास रखंे। सुखी रहेगें, शांति बनी रहेगी।
;आप मेरे विचारों से कहां तक सहमत है। अपने विचार मुझे ई-मेल, newschakra@gmail.com के माध्यम से अवश्य अवगत करायें या अपनी प्रतिक्रिया छोड़े। श्रेष्ठ विचारों को अखबार में भी जगह दी जाएगी तथा मुझे भी खुशी होगी। जय हिन्द, जय भारत।
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