इन जीपों की तस्वीरे कोटपूतली-बानसूर रोड़ से ली गई है। |
स्कूली जीप की तस्वीर बानसूर के एक प्राइवेट विघालय की है। |
चलना है तो जीप की छत पर बैठ जा या पीछे लटक जा...नहीं तो यूं ही पूरे दिन खड़ा रहेगा। जीप चालकों की यही धोंस अच्छे भले व पढ़े-लिखे आदमी को भी ‘लटकने’ पर मजबूर कर देती है।...और फिर मरता, क्या नहीं करता, कहावत यहीं तो चरितार्थ होती है। बेचारा व्यवस्था का शिकार आदमी करे भी क्या!
जी हां, परिवहन विभाग की अनदेखी की वजह से गzामीण लोगों को प्रतिदिन जान हथेली पर रख सफर करना पड़ रहा है जिसमें बच्चे, महिलाऐं एवं वृ¼जन भी शामिल हैं।
Åपर की तस्वीरों को ध्यान से देखिए, एक जीप जिसमें जीप चालक बुकिंग के समय 10 से अधिक सवारियां नहीं बिठाते वहीं सवारियों के लिए चलते समय ये 30 सवारियां पूरी हुए बिना स्टैण्ड से हिलते भी नहीं हैं।। तस्वीर 1 में एम-1 व्यक्ति को देखिए, यह व्यक्ति जीप के सबसे आगे के हिस्से पर बैठा है और ऐसी स्थिति में है कि अचानक बzेक लगने पर यह पलक झपकने से भी कम समय में सड़क पर गिर सकता है और दुर्घटना घट सकती है। अब तस्वीर 2 में एम-2 को देखिए, यहां इस छात्र ने जीप के पर्दे को पकड़ रखा है और वह भी एक हाथ से, दूसरे हाथ से इसने अपने बैग को संभाल रखा है। बzेकर या गड~डों से गुजरने के दौरान कभी भी हाथ पर्दे से फिसल सकता है और बस पहुंच गए अस्पताल।
अब तस्वीर 3 देखिए, यह आपको ज्यादा विचलित कर सकती है। इस जीप में सभी स्कूल छात्र हैं। बानसूर के एक प्राइवेट विद्यालय ने स्कूली बच्चों को यही ‘वाहन सुविधा’ प्रदान कर रखी है। यहां हो सकता है बच्चों के अभिभावकों को इस बात की तसल्ली हो कि स्कूल की गाड़ी बच्चों को घर से लाती व ले जाती हैं, लेकिन इस तस्वीर को देखकर अभिभावक सावधान हो जांए। ध्यान से देखिए इस जीप में तीन स्कूली बच्चे जीप में पीछे पायदान पर आधे-अधूरे लटक रहे हैं। इनमें से एम-3 ;छात्रद्ध तो अपना घुटना मोड़कर हवा में झूल रहा है।...और अब तस्वीर 4 तो आपने देख ही ली होगी। इस तस्वीर में यह छात्र पायदान पर उल्टे मुंह खड़ा है जो कभी भी चलती जीप से गिर सकता है। यह फोटो यह बताती है कि ये स्कूली जीप के ड्राइवर बच्चों का कितना ख्याल रखते हैं।...और आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए अधिकतर स्कूलों में स्कूल वाहन उनके संस्था प्रधान ही चलाते हैं।
...तो अब आप ही निर्णय कीजिए कि यह परिवहन विभाग की अनदेखी है या मनमानी छूट, जो जिंदगी से खेल रही है। न्यूज चक्र की प्रशासन से अपेक्षा है कि परिवहन को इसके लिए शीघz पाबंद करें और अभिभावकों से निवेदन है कि स्कूलों में बच्चों की फीस जमा कराकर ही अपने दायित्व की इतिश्री ना समझें, घर से निकलें और घर से स्कूल तक की खबर भी रखना शुरू करें, अन्यथा फिर क्या जब चिड़िया चुग जाए खेत।
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