सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अहसास करो तो...बोलती है कुर्सी


एक जमाना था जब मुझ पर बैठने वाले को लोग इज्जत और आदर के साथ देखते थे। आज जनता का भविष्य पूर्णतः मुझ पर बैठने वाले के हाथ में है। समाचार-पत्रों, टेलिविजन, पत्र-पत्रिकाओं में मेरा ही बोल-बाला रहता है। मेरे सामने किसी का राज नहीं बल्कि मुझ पर बैठने वाला ही राजा हो जाता है, पर इन सबके बावजूद कोई मुझसे कभी नहीं पूछता कि मुझे क्या ये सब पसंद है या नहीं?
मित्रों! आज मुझे मौका मिला है इसलिए मैं आपको अपनी मनोदशा बता रही हूं। मुझ कुर्सी के लिए आजकल लोग क्या-क्या नहीं करते? मेरी वजह से कहीं दंगे होते हैं जो कहीं खून बहता है। भाई-भाई का नहीं रहता, बेटा बाप से मुकाबला कर बैठता है। मुझे पाने के लिए रुपया पानी की तरह बहा दिया जाता है। कहीं लोगों को विविध प्रकार के लालच देकर उनसे वोट लिया जाता है, कहीं ऊंचे-ऊंचे सपने दिखाए जाते हैं। साम, दाम, दण्ड, भेद सभी का उपयोग कर आखिर कोई न कोई मुझे पा लेता है।
एक बार मुझ पर बैठने के बाद वह नेता जिसने चुनाव से पहले सिर्फ देने का वादा किया था, अब सिर्फ लेता ही लेता है। धीरे-धीरे शुरू हो जाता है भ्रष्टाचार का सिलसिला और जनता बेचारी हो जाती है बेहाल। यह सब देखकर क्रोध तो बहुत आता है पर मैं बस एक मूक दर्शक बन कर रह जाती हूं। कई बार तो परमेश्वर से प्रार्थना करती हूं कि काश! मेरे भी हाथ-पैर होते तो इन पापियों और देशद्रोहियों को अच्छा मजा चखाती।
बापू के इस देश में जहां पवित्रगंगा बहती है वहां राजनीति का गंदा नाला उफान भर रहा है। मेरा दुरूपयोग कर इस धरती मां को कष्ट दिया जा रहा है। कभी-कभी विचार आता है- कितना अच्छा होता अगर मेरा अस्तित्व ही न होता।
मित्रों! मेरी आपसे अपील है कि आप मेरे लिए नहीं अपने देश के लिए अपना वोट किसी समझदार और ईमानदार व्यक्ति को ही धर्म और मजहब से ऊपर उठकर मानवता के लिए दें।
मेरा अन्तिम सपना तो यही है कि एक दिन आएगा जब मुझ पर बैठने वाला अपने कत्र्तव्य का पालन करेगा और देश को आगे बढ़ाएगा। एक बार फिर से ये देश ‘‘सोने की चिड़िया’’ कहलाएगा।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते

  किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते ... कहते हैं हाथों की लकीरों पर भरोसा मत कर , किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। जी हां , इस कथनी को करनी में बदल दिया है राजस्थान की कोटपूतली तहसील के नारेहड़ा गांव की 14 वर्षीय मुखला सैनी ने। मुखला को कुदरत ने जन्म से ही हाथ नहीं दिये , लेकिन मुखला का हौसला , जज्बा और हिम्मत देखिए , उसने ‘ करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान ’ कहावत को भी चरितार्थ कर दिखाया है , अब वह अपने पैरों की सहायता से वह सब कार्य करती है जो उसकी उम z के अन्य सामान्य बच्चे करते हैं। कुदरत ने मुखला को सब कुछ तो दिया , लेकिन जीवन के जरूरी काम-काज के लिए दो हाथ नहीं दिये। बिना हाथों के जीवन की कल्पना करना भी बहुत कठिन है , लेकिन मुखला ने इसे अपनी नियति मान कर परिस्थितियों से समझौता कर लिया है। हाथ नहीं होने पर अब वह पैरों से अपने सारे काम करने लग गई है। पढ़ने की ललक के चलते मुखला पैरों से लिखना सीख गई है और आठवीं कक्षा में पहुंच गई है। मुखला को पैरों से लिखते देखकर हाथ वालों को भी कुछ कर दिखाने की प्रेरणा लेनी चाहिए...

जादुई धरातल पर असली मुलाकात, गzेट मैजिशियन शिव कुमार के साथ

आरा मशीन से कटकर दो टुकड़ों में बंट जाते हैं जादुगर शिवकुमार प्रश्न- शिव कुमार जी, जादू क्या है? इससे किस प्रकार लोगों का स्वस्थ मनोरंजन हो पाता है? जवाब- जादू विज्ञान पर आधारित एक कला है, और इस कला को खूबसूरती के साथ पेश करना ही मैजिक है। इसमें सामाजिक संदेश छिपे होते हैं। लोगों को अंधविश्वास से लड़ने की प्रेरणा देता है जादू। इसलिए इससे स्वस्थ मनोरंजन भी होता है। प्र श्न- अगर जादू एक कला है, विज्ञान है तो फिर जो लोग टोने-टोटके करते हैं, झाड़-फूक करते हैं, वो क्या है? जवाब- यह बिल्कुल गलत और झूठ है कि टोने-टोटकों या झाड़फूंक से किसी को वश में किया जा सकता है। तंत्र-मंत्र जादू-टोना कुछ नहीं होता है। अगर जादू से किसी की जान ली जा सकती या दी जा सकती तो सरकार देश की सीमाओं की रक्षा के लिए एक जादूगर को नियुक्त कर देती और किसी को शहीद होना नहीं पड़ता। ...लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता है। जादू से सिर्फ एक स्वस्थ मनोरंजन हो सकता है, ऐसा मनोरंजन जिससे डिप्रेशन का मरीज भी ठीक हो जाता है। प्रश्न- ...तो जादू के शो के माध्यम से आप किस प्रकार के संदेश समाज को देते हैं? जवाब- हम अपने शो में लड़की को गायब क...

लापरवाही का शिकार गांव बनेटी, सभी सुविधाऐं होने के बावजूद उनका उपयोग नहीं कर पा रहे ग्रामवासी