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सपने सच में सच होते हैं

सपने देखना ही काफी नहीं होता, बल्कि उन सपनों को पूरा करने के लिए कौशिश भी करनी होती है। फिर मुश्किलें खुद ही रास्ता बन जाती हैं और सफलता की एक कहानी रचती है, जिसमें दृढ़ इच्छा शक्ति वाला एक साधारण व्यक्ति नायक बनकर उभरता है।...ऐसे ही नायक बनकर उभरे हैं कोटपूतली के रविन्द्र यादव...जिन्होंने बहुत असामान्य परिस्थितियों में आईएएस बनने का फैसला किया...राह मंे मुश्किलें बहुत थी। पहले प्रयास में निराशा भी हाथ लगी...लेकिन रविन्द्र ने अगले ही प्रयास में वह हासिल कर लिया, जिसका सपना उनके स्वर्गीय पिताजी ने देखा था...आज हम आपको उन्हीं से रूबरू करवा रहें है...प्रस्तुत हैं आईएएस रविन्द्र यादव से बातचीत के मुख्य अंश। प्रश्न- रविन्द्र जी, आपको आईएएस बनने का ख्याल कहां से आया यानी इसकी प्रेरणा कहां से मिली? उत्तर- पिताजी की इच्छा थी कि मैं आईएएस बनूं, बस मैंने उनकी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए हर तरह बाधा पार की। प्रश्न- यह आपका कौनसा प्रयास था? उत्तर- यह मेरा दूसरा प्रयास था। इससे पहले भी मैं साक्षात्कार तक पहुंचा था, लेकिन अपडेट नहीं होने के कारण निराश होना पड़ा था। इस बार मैंने कड़ी तैयार

yaad...

यादें याद आती हैं, तेरे साथ बीता हर लम्हा, हर पल, हर मुलाकात, हर बात याद आती है। कितना भी बदलें अब हम या तुम वो सुनसान राहें, पथरीली डगर रह रहकर याद आती हैं। वो सूरज की पहली किरण के साथ घंटो बतियाना तुम्हारे साथ, हरियल घास की गुदगुदी याद आती है। यादें याद आती हैं, तेरे साथ बीता हर लम्हा, हर पल, हर मुलाकात, हर बात याद आती है।
उफ् ये कैसा तंत्र है...? इंदौर में राजस्थान पत्रिका पर हमले होना, वहां की सरकार और प्रशासन के नकारापन को दर्शाता है, जो अब तक अपराधियों पर नकेल नहीं कस सकी है। यह लोकतंत्र की हत्या का प्रयास है, उस संविधान की हत्या का प्रयास है, जो स्वतंत्र अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है।...तो फिर अब तक वहां के सामाजिक संगठन, प्रशासन और सरकार किस बात का इंतजार कर रहे हैं, क्या अभी कुछ और होना बाकी है? होना तो यह चाहिए था कि ऐसे समाजकंटकों की नाक में तुरंत नकेल डाल उन्हें एहसास करा देना चाहिए था कि लोकतंत्र के चैथे स्तम्भ से खिलवाड़ करने की हिमाकत करने पर क्या होता है, फिर राजस्थान पत्रिका तो निर्भिक और निष्पक्ष पत्रकारिता के लिए जानी जाती रही है।...मैं उन चंद राजनेताओं को साधूवाद देता हुं जिन्होंने संसद में सरकार के समक्ष प्रेस की स्वतंत्रता पर हो रहे हमले पर चिंता जाहिर की और जवाब मांगा।...लेकिन दुखः है कि भाजपा आलाकमान अभी तक इस मुद्दे पर चुप हैं।

गौ-शाला की जमीन पर टिकी भू-माफियाओं की नजर

कोटपूतली। शहर के बानसूर रोड़ स्थित गौ-शाला इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही है। कारण कि कुछ समाजकंटक लोग यहां दान में आयी जमीन को खुर्द-बुर्द करने में लगे हैं। स्थानीय लोगों ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से यहां भू-माफिया सक्रिय हो रखे हैं और जमीन पर टेड़ी नजरें गड़ाए हुए हैं। अभी हाल ही यहां गौ-शाला के मुख्य द्वार के सामने की जमीन जो की गौ-शाला को दान में मिली हुई है पर गौ-शाला समिति की ओर से गर्मी में गायों के लिए टीन शेड़ लगवाकर छाया करने हेतु निर्माण कार्य शुरू करवाया गया था, जिस पर कुछ भू-माफियाओं ने अपना हक जताते हुए कार्य बंद करवा दिया?...जबकि समिति के लोगों का कहना है कि उक्त जमीन गौ-शाला की ही है। इस संबध में गौ-शाला समिति के सदस्य रामकंुवार ने बताया कि ‘यहां गायों के लिए टीन-शेड़ लगाकर छाया करने का इंतजाम किया जा रहा था, जिसे कुछ बाहुबली समाजकंटकों ने आकर काम रूकवा दिया। अब हम समिति के सभी लोग इक्ठ्ठा होकर यहां अपनी निगरानी में कार्य करवा रहे हैं। इसी तरह समिति के सरंक्षक हरीशचंद्र चर्तुवेदी व उपाध्यक्ष कैलाशचंद चैकड़ायत व अशोक सुरेलिया ने जानकारी दी। समिति के संरक्षक ने बताया कि

मेरा लाड़ला...

यूं ही नहीं उलझता ट्रेफिक?

हाइवे पर पुलिया निर्माण कार्य के चलते सब्जी मंडी तिराहे से लेकर आरटीएम होटल तक यातायात व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है। घड़ी-घड़ी जाम और आपस में उलझता ट्रैफिक, व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाता है। ऐसा नहीं है कि व्यवस्था को संभालने या टैªफिक को काबू में करने के लिए कोई मौजूद नहीं रहता है, अगर चैराहों पर थोड़ी देर खड़े रहकर देखें तो ‘हर चैराहे पर 40 से 45 जवान तैनात दिखेगें, लेकिन इनकी उपस्थिति यहां ‘नगण्य -सी’ रहती है।...यानी उपस्थित रहकर भी अनुपस्थित। कोटपूतली शहर हाइवे के दो-तरफ बसा हुआ है, इसलिए यहां लोकल टैªफिक अधिक रहता है और अधिकतर वाहन शहर के मुख्य चैराहे एवं दीवान रीजेन्सी के सामने सब्जी मंड़ी तिराहे से शहर में प्रवेश करते हैं। यहां व्यवस्था संभालने के लिए प्रशासन ने काफी संख्या में होम गार्ड एवं पुलिस के जवान मुस्तैद कर रखे हैं। लेकिन इनकी हालत ये है कि बिगड़ती व्यवस्था को ये मूकदर्शक बने देखते रहते हैं, यहां तक कि किसी के टोकने पर भी ये किसी को टोकना उचित नहीं समझते...और अगर किसी को टोक लेते हैं तो फिर गाड़ी को कोने में लगवाये बिना नहीं छोड़ते हैं। ऐसी व्यवस्था के कारण हालात ये रह

आज तुम फिर खफा हो

आज तुम फिर खफा हो मुझसे, जानता हूँ मैं, न मनाऊगा तुमको, इस बार मैं। तुम्हारा उदास चेहरा, जिस पर झूठी हसी लिये, चुप हो तुम, घूमकर दूर बैठी, सर को झुकाये, बातों को सुनती, पर अनसुना करती तुम, ये अदायें पहचानता हूँ मैं, आज तुम फिर खफा हो मुझसे, जानता हूँ मैं। नर्म आखों में जलन क्यों है? सुर्ख होठों पे शिकन क्यों है? चेहरे पे तपन क्यों है? कहती जो एक बार मुझसे, तुम कुछ भी, मानता मै, लेकिन बिन बताये क्यों? आज तुम फिर खफा हो मुझसे, जानता हूँ मै।।