सपने देखना ही काफी नहीं होता, बल्कि उन सपनों को पूरा करने के लिए कौशिश भी करनी होती है। फिर मुश्किलें खुद ही रास्ता बन जाती हैं और सफलता की एक कहानी रचती है, जिसमें दृढ़ इच्छा शक्ति वाला एक साधारण व्यक्ति नायक बनकर उभरता है।...ऐसे ही नायक बनकर उभरे हैं कोटपूतली के रविन्द्र यादव...जिन्होंने बहुत असामान्य परिस्थितियों में आईएएस बनने का फैसला किया...राह मंे मुश्किलें बहुत थी। पहले प्रयास में निराशा भी हाथ लगी...लेकिन रविन्द्र ने अगले ही प्रयास में वह हासिल कर लिया, जिसका सपना उनके स्वर्गीय पिताजी ने देखा था...आज हम आपको उन्हीं से रूबरू करवा रहें है...प्रस्तुत हैं आईएएस रविन्द्र यादव से बातचीत के मुख्य अंश। प्रश्न- रविन्द्र जी, आपको आईएएस बनने का ख्याल कहां से आया यानी इसकी प्रेरणा कहां से मिली? उत्तर- पिताजी की इच्छा थी कि मैं आईएएस बनूं, बस मैंने उनकी इसी इच्छा को पूरा करने के लिए हर तरह बाधा पार की। प्रश्न- यह आपका कौनसा प्रयास था? उत्तर- यह मेरा दूसरा प्रयास था। इससे पहले भी मैं साक्षात्कार तक पहुंचा था, लेकिन अपडेट नहीं होने के कारण निराश होना पड़ा था। इस बार मैंने कड़ी तैयार
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