बचपन! जीवन की सबसे सुनहरी अवस्था। एकदम अलमस्त...चिंता-फिकर, राग-द्वेष, हार-जीत से दूर। लेकिन आज?...बचपन के मायने बदल गए हैं। अब बचपन यानी...प्रतिस्पर्धा, प्रतियोगिता, स्टेज और स्टेज की धमक और चमक। आज अनजाने में मां बाप ही बच्चों का बचपन छीन रहे हैं, समाज में अपनी नाक ऊंची रखने की होड़ में बच्चे उनकी महत्वाकांक्षाओं के बीच मोहरा बनकर रह गये हैं। हर दिन, हर घंटे टीवी चैनलों पर प्रसारित होते रियलिटी शोज ने बच्चों का बचपन भी रियल से रील बना दिया है।...और इस रील के डायरेक्टर बन बैठे हैं उनके अपने मां-बाप, जो छोटे-छोटे बच्चों को लेकर घंटों आॅडिशन के लिए बैठे रहते हैं। कई बार तो कड़ी धूप में सुबह से शाम और फिर शाम से रात कर दी जाती है। कोई नहीं पूछता कि बच्चे ने कहाँ लघुशंका की, कहाँ खाया-पिया। जिन्हें देखभाल करनी चाहिए, वे खुद ही बच्चों को सताते हैं तो दूसरे कहां तक ख्याल रख सकते हैं। लेकिन इससे भी अहम बात यह है कि इन रियलिटी शोज तक पहुंचने के लिए, यानी उसकी तैयारी करने तक उन बच्चों पर कितना कहर बरपा होगा, जरा सोचिए? अभी एक शो में सैकड़ों बच्चे आडिशन से रह गए, तो उनके मां-बाप ने हंगामा मचा दि