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बार-बार के आंदोलन लोकतंत्र की सेहत के लिए अच्छे नहीं

    पिछले एक साल के घोटालों से ना केवल जनता की समस्याओं व आक्रोश का गाफ बढ़ा है बल्कि अंतर्राष्टीय स्तर पर भी देश की छवि खराब हुई है। समस्याओं से पीड़ित लोगों के बीच के एक आदमी को जनता यह सोच कर चुन लेती है कि यह भुक्त भोगी है, हमारे ही बीच का है इसलिए यह हमारी समस्याओं का ठीक से समाधान करा पाएगा। लेकिन वही आम आदमी चुनाव जीतते ही खास हो जाता है और देखते ही देखते करोड़ों में खेलने लगता है। और जब कभी एक मंच पर किसी एक पार्टी के नेता द्वारा किसी दूसरी पार्टी के नेता पर उंगली उठाई जाती है तो स्पष्टीकरण के रूप में कहा जाता है कि हमारे नेता का तो बहुत छोटा घोटाला है तुम्हारी पार्टी के नेता ने तो इतना बड़ा घोटाला किया था। इस तरह से बेशक वो एक दूसरे का मूंह बंद करने की कोशिश करते हों लेकिन जनता तो दोनों की ही कारस्तानी देख चुकी होती है और जान जाती है कि एक नागनाथ है तो दूसरा सांपनाथ।
इस तरह राजनेताओं पर से उठते विश्वास के कारण ही आंदोलनों का जन्म हो रहा है। ताजा घटनाकम में पहले अन्ना हजारे और अब बाबा रामदेव ।  आज बाबा रामदेव अगर सत्यागह करने की बात कर रहे हैं तो इसके लिए जिम्मेवार कौन है? लाखों करोड़ रूपया काले धन के रूप में विदेशों में जमा पड़ा है यह आज थोड़े ही डला है, कई सालों से पड़ा है, तो सरकार ने इसे वापिस लाने के लिए कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए । जब अति की पराकाष्ठा होने पर कोई अन्ना हजारे या बाबा रामदेव की अगुवाई में देश की जनता आवाज उठाने की कोशिश करती है, तभी सरकार उस पर कार्रवाही करने की बात क्यों करती है?
    अन्ना हजारें के आंदोलन में देखा गया कि एक आवाज में देश के लाखों लोग दिल्ली में इक्ठ~ठा हो गए और अब लग रहा है कि बाबा रामदेव के सत्यागzह आंदोलन में उससे भी ज्यादा लोग इक्ठ~ठा होंगे। इससे साबित होता है कि देश का आम आदमी सरकार की नीति व कार्यप्रणाली से त्रस्त है और वो अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा जो टैक्स के रूप में जमा कराता है, उसे यूं लुटते हुए नहीं देख सकता। जनता की भीड़ यह बताती है कि आम आदमी के दिल में आक्रोश है, लेकिन वह अभिव्यक्ति नहीं कर सकता। लेकिन जब उसे जयप्रकाश नारायण, अन्ना हजारे या बाबा रामदेव जैसा पथ-प्रर्दशक मिल जाता है तो वो उसे अपना तन-मन-धन से समर्थन देता है।
    समय रहते हमारी सरकार को इस बारे में गहन चिन्तन करना होगा। क्योंकि सभी जानते हैं कि सहनशीलता की भी एक हद होती है ‘अति सर्वत्र वर्जते’। हमारे नेताओं को अब देश की हवाओं का रूख भांप लेना चाहिए क्योंकि मिश्र, लीबिया जैसे हालात होते हैं तो पूरा देश कई सालों पीछे चला जाएगा।
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    जय हिन्द, जय भारत।
                    - विकास वर्मा

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