राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रदेश उपाध्यक्ष एंव पीसीसी मैम्बर राजेन्द्र सिंह यादव ने कोटपूतली कांग्रेस कार्यालय में श्रीमती इन्दिरा गांधी की पुण्यतिथि पर पुष्प अर्पित करते हुए कोटपूतली एंव नारेहड़ा ब्लाॅक के कांग्रेसी कार्यकर्ताओ की बैठक की अध्यक्षता करते हुए कहा कि सभी को एकजूट होकर श्रीमती गांधी के सिद्धान्तो के अनुरुप कार्य करना चाहिए तथा कहा कि श्रीमती गांधी दुनिया की महानतम विभुतियो में से एक थी। इन्दिरा जी असाधारण रुप से जुझारु नेता थी एंव उनमें गजब की कल्पनाशीलता व नेतृत्व क्षमता थी जिसके कारण उनके धुर विरोधी भी तारीफ करने से नही चुकते थे। इस अवसर पर कोटपूतली ब्लाॅक के अध्यक्ष बुद्धराम सैनी एंव नारेहड़ा ब्लाॅक के उदयवीर सिंह तंवर ने कार्यकर्ताओ को श्रीमती इंदिरा जी की जीवनी से प्रेरणा लेते हुए कार्य करने की सलाह दी। बैठक में नगर अध्यक्ष एड.अशोक आर्य, युवा नेता विराट यादव, सुबेसिंह चैधरी, महामंत्री मुरलीधर गुप्ता, उपाध्यक्ष सुरजाराम मीणा, पुर्व पालिका अध्यक्ष प्रकाश चन्द सैनी, किसान कांग्रेस के नेता रोशन धनकड़, मुनानुदीन कुरैशी, नगर उपाध्यक्ष इन्द्राज सैनी, शंकरलाल सोनी, प्रवक्ता एड.रोहिताश चैधरी, पूर्णमल दीवान, वीरसिंह चैधरी, रामवतार गुर्जर, ओबीसी के जिलाध्यक्ष सेडूराम कसाणा, राजपाल चैधरी, प्रवक्ता राजबीर यादव, गिरधारी लाल गुरुजी, पूर्णसिंह तंवर, जसवंत माठ, धर्मपाल रावत, गोधराज शर्मा, रविन्द्र यादव एडवोकेट, रामवतार यादव, सुगन कसाणा सहित कांग्रेसी कार्यकर्ता एंव जनप्रतिनिधि मौजूद थे।
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किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते ... कहते हैं हाथों की लकीरों पर भरोसा मत कर , किस्मत तो उनकी भी होती है जिनके हाथ नहीं होते। जी हां , इस कथनी को करनी में बदल दिया है राजस्थान की कोटपूतली तहसील के नारेहड़ा गांव की 14 वर्षीय मुखला सैनी ने। मुखला को कुदरत ने जन्म से ही हाथ नहीं दिये , लेकिन मुखला का हौसला , जज्बा और हिम्मत देखिए , उसने ‘ करत-करत अभ्यास के जड़मत होत सुजान ’ कहावत को भी चरितार्थ कर दिखाया है , अब वह अपने पैरों की सहायता से वह सब कार्य करती है जो उसकी उम z के अन्य सामान्य बच्चे करते हैं। कुदरत ने मुखला को सब कुछ तो दिया , लेकिन जीवन के जरूरी काम-काज के लिए दो हाथ नहीं दिये। बिना हाथों के जीवन की कल्पना करना भी बहुत कठिन है , लेकिन मुखला ने इसे अपनी नियति मान कर परिस्थितियों से समझौता कर लिया है। हाथ नहीं होने पर अब वह पैरों से अपने सारे काम करने लग गई है। पढ़ने की ललक के चलते मुखला पैरों से लिखना सीख गई है और आठवीं कक्षा में पहुंच गई है। मुखला को पैरों से लिखते देखकर हाथ वालों को भी कुछ कर दिखाने की प्रेरणा लेनी चाहिए...
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